ब्रह्माकुमारीज़ की कहानी

ब्रह्माकुमारीज़ एक आध्यात्मिक विश्व विद्यालय

माउण्ट आबू, राजस्थान के अरावली पर्वत श्रृंखला की ऊंची चोटी पर बसा हुआ पर्वतीय स्थल जो वर्ष 1950 में कराची, पाकिस्तान से स्थानान्तरित आदि संगठन को मनन चिन्तन और शान्ति का अनुभव कराने वाला एक आदर्श स्थान साबित हुआ। किराये पर लिये गये मकान में कुछ साल रहने के बाद इस संगठन ने वर्तमान स्थान पर स्थानान्तरण किया। जो प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय (ब्रह्माकुमारीज़ एक ईश्वरीय विश्व विद्यालय) के नाम से स्थापित हुआ। ब्रह्माकुमारीज़ का यह मुख्यालय मधुबन के नाम से जाना जाता है।

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Spiritual Headquarters - Mount Abu

Take a magical tour to Mount Abu, India where Brahma Kumaris students have been journeying to for over 60 years for spiritual wisdom.

ब्रह्मा बाबा – संस्थापक

वह कौन थे? 

सन 1880 में एक गांव के विनम्र स्कूल मास्टर के घर में ब्रह्मा बाबा दादा लेखराज कृपलानी का जन्म हुआ। हिन्दू धर्म के रीति रिवाजों के अनुसार लेखराज का पालन-पोषण हुआ। बहुत छोटी उम्र में अनेकानेक काम करने के बाद उन्होंने हीरे-जवाहरातों का व्यवसाय शुरू किया, जिसमें उन्होंने एक हीरा विक्रेता के रूप में बाद में बहुत नाम कमाया। पांच बच्चों के पिता दादा लेखराज अपने समाज का भी नेतृत्व करते थे। जो अपने सामाजिक कार्यों के लिए जाने जाते थे। सन 1936 में उम्र के उस पड़ाव में जब सामान्यत: सभी लोग सेवा निवृत्ति की तैयारी करते हैं तब उन्होंने वास्तव में अपने जीवन के एक सक्रिय और आकर्षक पड़ाव में प्रवेश किया। गहरी आध्यात्मिक समझ और साक्षात्कारों की श्रृंखला के पश्चात् उन्होंने एक सशक्त आकर्षण को महसूस किया और अपने व्यवसाय को समेट कर अपना समय, शक्ति और धन को इस विद्यालय की स्थापना अर्थ खर्च किया जो बाद में ब्रह्माकुमारीज़ ईश्वरीय विश्व विद्यालय बना।

सन 1937 से 1938 के बीच में उन्होंने 8 युवा बहनों की एक व्यवस्थापकीय कमेटी बनाई और अपनी सर्व चल-अचल सम्पत्ति इस ट्रस्ट को समर्पित कर दी। 

 

भारत भर में अनेक ब्रह्माकुमारी सेवाकेन्द्रों के स्थापना में मार्गदर्शन करते हुए 18 जनवरी 1969 को उन्होंने अपना भौतिक देह त्याग दिया। मधुबन में स्थित शान्ति स्तम्भ उनके जीवन और कार्यों की एक श्रृद्धांजलि के रूप में स्थापित किया गया जो एक सामान्य मनुष्य से अति सामान्य महानता को प्राप्त करना और जीवन के गहन सत्यों को छूने की चुनौती स्वीकार करने का अद्भुत मिसाल साबित हो रहा है।

 

ब्रह्मा बाबा की विरासत 

सन 1936 में ब्रह्मा बाबा को हुए साक्षात्कारों के बाद अनेकों वर्ष बीत गये, जिस जीवनशैली को उन्होंने क्रान्तिकारी रूप से अपने जीवन में अपनाया उससे प्रेरित होकर अनेकों ने अपनेआपको सशक्त बनाकर भविष्य के लिए आशा की किरण जगाई। ब्रह्मा बाबा ने जिस जीवन कौशल की शिक्षा दी वो समय की कसौटी पर खरी उतरती गई। जिन युवा बहनों को उन्होंने सबसे आगे रखा था अब वो अपने 80-90 वर्ष की आयु में शान्ति, प्रेम और ज्ञान का प्रकाश स्तम्भ बनकर आगे बढ़ रही हैं।

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